
फरीदाबाद , जनतंत्र टुडे / नारी है मासूम,सरल बाला है , जब माँगे धरती खून, क्रांति ज्वाला है । अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उक्त पंक्तियों के माध्यम से सभी को बधाइयांँ देते हुए श्रीमती आशा शर्मा नें बताया कि प्राचीन काल में महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी थी। उन्हें शिक्षा का अधिकार प्राप्त था। समाज में उन्हें बहुत ही आदरणीय स्थान दिया गया था। उनके मार्गदर्शन में समाज चलता था। समाज में उनका नाम पुरूषों से पहले लिया जाता था। गौरीशंकर, राधाकृष्ण,सीता राम आदि उदाहरण इसके प्रमाण हैं।। इसी तरह पुत्रों की पहचान मांँ के नाम से होती थी जैसे कर्ण को राधेय, कुंती पुत्र भीम , कौशल्या नंदन,देवकी नंदन,सुमित्रानंदन आदि इस तथ्य के गवाह हैं।
उन्होंने बताया कि नेतृत्व के गुण महिलाओं को प्राकृतिक रूप से विद्यमान है। प्रकृति का अवलोकन करने पर पता चलता है कि मादा चिड़िया आमने बच्चों को उड़ना सिखाती है , शेरनी अपने बच्चों को शिकार करना सिखाती है, हाथियों के झुंड का नेतृत्व सबसे बूढ़ी हथिनी करती है।लेकिन मध्य काल आते आते उनकी स्थिति में गिरावट आ गई। योरोप में अठारहवीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप सारे खतिहर और हाथ के दस्तकार मजदूर बन कर रह गए।इन औद्योगिक मज़दूरों में महिला कर्मियों की हालत बड़ी दयनीय थी। उन्हें वोट देने का अधिकार नहीं था। उन्हें कोई अवकाश नहीं दिया जाता था। उन्हें पुरुषों के मुकाबले वेतन भी कम मिलता था और उनके काम के घंटे ज्यादा था। इन हालातों को बदलने के लिए वहां की महिलाओं ने संघर्ष का बिगुल बजाया।
सन् 1910 में कोपैनहेगेन में सैकड़ों महिलाओं ने प्रदर्शन कर सरकार के समक्ष अपनी माँगें रखी। कुछ सुधार हुआ और उत्तरोत्तर सुधार होता गया। उनकी स्थिति में ज्यों ज्यों सुधार हुआ ,त्यौं त्यौं महिला सशक्तिकरण होता गया। आज महिलाएं आकाश पाताल सभी जगह अपनी सफलता का झंडा बुलंद कर रही हैं। उन्होंने बताया कि महिलाओं की स्थिति जब तक सांकेतिक एवं प्रतीकात्मक सुधार के बजाय धरातल स्तर पर कार्य नहीं किए जाते तब तक महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं होगा। उन्होंने बताया कि तमाम सामाजिक सुधार आंदोलनों एवं कानून के बावजूद आज भी समाज कन्या भ्रूण हत्या के कलंक से मुक्त नहीं हो पाया है।