कबीर की फिलॉसफी के नाम रही सांस्कृतिक संध्या
फरीदाबाद,जनतंत्र टुडे
15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत कबीरदास का एकता और प्रेम का संदेश वर्तमान युग में और भी अधिक प्रासंगिक है। शुक्रवार को सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले की सांस्कृतिक संध्या भी कबीर की इसी फिलॉसफी के नाम रही। अनिर्बान घोष के दास्तान लाइव बैंड ने बड़ी चौपाल पर “कबीरा खड़ा बाजार में” को पाश्चात्य वाद्य यंत्रों के साथ प्रस्तुत किया तो दर्शकों ने संगीत की स्वर लहरियों के माध्यम से कबीर के संदेश को आत्मसात किया।
भीष्म साहनी द्वारा लिखित “कबीरा खड़ा बाजार में” को एम.के. रैना ने वर्ष 1982 में नाटक का रूप दिया था, जो बहुत मशहूर हुआ था। अनिर्बान घोष ने इसी नाटक को 2021 में नए प्रारूप में ढाल दिया। फोक से शुरू हुआ यह सफर पाश्चात्य संगीत पर आकर और अधिक ऊंचाइयां छूने लगा। अनिर्बान घोष ने सांस्कृतिक संध्या की शुरूआत मैं जब भूला रे भाई.. से करके दुनिया को एकता व भाईचारे का संदेश दिया, जो हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के निर्गुण शाखा के ज्ञानमर्गी उपशाखा के महानतम कवि कबीर उस दौर में देते थे। आज मनोरंजन के जरिए कबीर का चिंतन व जीवन दर्शन को सामने रखा।
ना मैं धर्मी ना अधर्मी.. से उन्होंने कबीर की तरह स्ष्टवादी रहने की सीख दी। नारद प्यार सो अंतर नाही… के माध्यम से लोगों को मिल जुलकर प्यार से रहने का संदेश दिया।
अंत में उन्होंने हमारे राम रहीम करीमा केशव अलह राम सत सोई… के साथ धर्मनिरपेक्षता का संदेश दिया। यही संदेश कबीर ने उस दौर में सभी धर्म के लोगों को एक साथ रहने के लिए दिया था। बैंड ने दर्शकों के मन, दिल व आत्मा को खुराक देकर उन्हें अध्यात्म की ओर मोड़ने का काम किया।
इस कार्यक्रम में वोकल और स्पोकन वर्ड में सुधीर, मोहम्मद फहीम अनुभूति तथा जोगेंद्र ने संगत दी। वहीं गिटार पर अमर सुकेश तथा ड्रम पर फुनकेश ने संगत दी।