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हर वर्ग के व्यक्ति को गले लगाते थे वैकुंठवासी बाबा – स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य  

फरीदाबाद,जनतंत्र टुडे

सूरजकुंड रोड स्थित श्री सिद्धदाता आश्रम के स्थापना दिवस एवं संस्थापक वैकुंठवासी स्वामी सुदर्शनाचार्य महाराज की जयंती के अवसर पर आज देश विदेश से हजारों की संख्या में भक्तों ने जुटकर मेले का रूप दे दिया। इस अवसर पर विशाल शोभायात्रा निकाली गई वहीं भक्ति संगीत, प्रवचन एवं सांस्कृतिक प्रस्तुतियों में भी भक्तों ने भागीदारी की। 

इस अवसर पर अपने प्रवचन में पीठाधिपति जगदगुरु स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य महाराज ने कहा कि श्री गुरु महाराज करुणा के सागर थे। उन्होंने अपने दरबार पर आने वाले हर दीन दुखी को मां के जैसा प्रेम दिया, पिता के जैसा सहारा दिया और गुरु के रूप में शिक्षा दी। इन तीनों रूपों में उन्होंने ब्रह्मा, विष्णु और महेश के गुणों को साकार दिखाया। वह भक्तों के भूत भविष्य और वर्तमान बिना बताए जान लेते थे। उनका यह वचन था कि यहां आने वाले को भुक्ति और मुक्ति की प्राप्ति में कोई संशय नहीं रहेगा और यह सच है। 

इससे पहले स्वामी पुरुषोत्तमाचार्य ने वैकुंठवासी स्वामी की मूर्ति का सविधि अभिषेक किया और लोक कल्याण के लिए उनसे प्रार्थना की। उन्होंने इसके बाद शाम को निकाली विशाल शोभायात्रा को भी सान्निध्य प्रदान किया। इस अवसर पर बग्गी, ढोल, ताशे, धर्मध्वजाओं के साथ भक्तों ने गुरुजी के जयकारों के साथ प्रफुल्लित मन से कार्यक्रम में भागीदारी की। रंग बिरंगी रोशनी में सजा आश्रम एवं दिव्यधाम एवं सूरजकुंठ मार्ग बेहद अनूठा प्रतीत हो रहा था। 

वर्ष 1989 में की सिद्धदाता आश्रम की स्थापना 

मूलरूप से राजस्थान के दौसा (गांव पाड़ला) निवासी स्वामी सुदर्शनाचार्य ने अपने ईष्ट के लिए फरीदाबाद में एक दिव्यस्थान का संकल्प लेकर वर्ष 1989 में निर्माण प्रारंभ करवाया। जो विशाल 11 शिखरों वाले श्री लक्ष्मीनारायण दिव्यधाम, 300 गौवंश वाले श्री नारायण गौशाला और करीब 100 बटुकों को शिक्षा देने वाले स्वामी सुदर्शनाचार्य वेद वेदांग संस्कृत महाविद्यालय के रूप में पल्लवित पोषित हो चुका है। 

रामानुज संप्रदाय में प्रतिष्ठित हुए जगदगुरु 

स्वामी सुदर्शनाचार्य ने छह वर्ष की अल्पायु में ही धर्म में स्वयं को रत् कर लिया था। वह काशी और वृंदावन में रहकर शिक्षा ग्रहण करने के बाद भानगढ़ के दुर्गम वनों में तप करने चले गए। उन्होंने अपने तप से असंख्य लोगों के जीवन में आमूल चूल परिवर्तन किए और भगवान की राह में लगाया। उनके व्यक्तित्व से प्रभावित श्री रामानुज संप्रदाय के संतों ने स्वामी सुदर्शनाचार्य को जगदगुरु रामानुजाचार्य और अनंतश्री विभिूषित की पदवी से अभिषिक्त किया। 

आश्रम को भी इंद्रप्रस्थ एवं हरियाणा पीठ की मान्यता 

श्री सिद्धदाता आश्रम को रामानुज संप्रदाय में इंद्रप्रस्थ एवं हरियाणा की पीठ के रूप में मान्यता प्राप्त है। इसके बारे में कहा जाता है कि यह उत्तर भारत में कारसेवा से निर्मित सबसे बड़ा धार्मिक तीर्थ क्षेत्र है। जहां आने वालों को भावानुसर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

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