बेकार हो चुके जूट और कपड़ों को रिसाइकिल करके बना रहे अनोखे चप्पल
फरीदाबाद,जनतंत्र टुडे
37वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय शिल्प मेले में पटना से आए शिल्पकार विश्वनाथ दास बेकार हो चुके जूट और कपड़ों से अनोखा चप्पल बनाते हैं। इसकी खासियत यह है कि चप्पल पहनने की मियाद पूरी होने पर फैंकने के बाद वह खाद बन जाती है। विश्वनाथ दास अपनी धर्मपत्नी रीता दास के साथ मिलकर पिछले 25 साल से इस काम को कर रहे हैं। बीकॉम पास पति-पत्नी इससे पहले करीब दस साल तक विभिन्न बड़ी कंपनियोंं में नौकरी भी कर चुके हैं। आत्मनिर्भर बनने की सोच ने दोनो पति-पत्नी को शिल्पकार बना दिया।
तंगी के दौर में पांच हजार रुपए उधार लेकर दोनो ने इस कारोबार को शुरू किया था। आज वह सैकड़ों लोगों को आत्मनिर्भर बनाकर महीने में करीब 70 से 80 हजार रुपए तक की आमदनी भी कर रहे हैं। इसी कारोबार से उन्होंने अपने बड़े बेटे को एयरक्राफ्ट इंजीनियर और छोटे बेटे को डॉक्टर बनाया है। इनका उद्देश्य देश के ग्रामीण युवाओं को अपने हुनर और कम लागत से आत्मनिर्भर बनाना है।
इस प्रकार की शिल्पकारी की शुरूआत
कोलकाता के रहने वाले विश्वनाथ दास का कहना है कि वर्ष 1993 में बीकॉम करने के बाद उनका विवाह रीता के साथ हुआ। घर चलाने के लिए करीब दस साल तक बड़ी कंपनियों में नौकरी की। इसके बाद उनके अंदर आत्मनिर्भर बनने और अनोखा काम शुरू करने का विचार आया। नौकरी को छोडक़र वर्ष 2000 में उन्होंने गांवों में फेंक दिए जाने वाले जूट के बोरे एकत्रित करके उससे चप्पलें, बैग आदि बनाने का सोचा।
धनराशि न होने के कारण उन्होंने जूटबोर्ड के अधिकारी कोलकाता के मोनोजित दास से संपर्क किया और 5 हजार रुपए उधार लेकर काम शुरू किया। सिक्किम में लगी प्रदर्शनी में विश्वनाथ दास ने दोगुनी कमाई कर आगे बढ़ते चले गए।
कोरोना काल में कपड़ों से बनाना शुरू किया चप्पल
शिल्पकार ने बताया कि कोरोना काल में जब जूट की कंपनियां बंद हो गई थी तब अपने घर के बेकार कपड़ों को घर में ही रिसाइकल करके उससे भी चप्पल बनाना शुरू कर दिया। कपड़ों से बने इन चप्पलों की मांग पूरे देश में है। अब तक वह देश के सभी राज्यों के अलावा बंग्लादेश, भूटान और नेपाल में भी अपने इस प्रोडक्ट को पहुंचा चुके हैं। वर्ष 2003 में इन्हें भारत सरकार ने मास्टर ट्रेनर के अवॉर्ड से नवाजा था।
इनका दावा है कि कपड़ों और जूट से तैयार की गई लेडिज चप्पल साल भर और पुरुषों के चप्पलों की लाइफ करीब आठ महीने तक रहती है।