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पत्थरों में आस्था जगाती है एक टांग विहीन जखणी माता

फरीदाबाद,जनतंत्र टुडे

धौलाधार की पहाड़ियों के आगोश में गगनचुम्बी देवदार दरख्तों के बीच आस्था की लौ जलती दिखाई देती है… घंटियों की ध्वनियाँ सन्नाटे को चीरते हुए कानों से टकराती हैं तो जयकारा गूंज उठता है। पालमपुर से लगभग 8 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर यह जखणी माता का प्राचीन मंदिर है। सदियों से यह मंदिर आस्था और विश्वास का प्रतीक है। इस मन्दिर के चमत्कार पत्थरों में भी आस्था जगाते हैं। यहां माता अपने अनोखे स्वरूप में स्थापित हैं। जखणी माता के रूप में माँ दुर्गा का यह स्वरूप एक टांग से रहित है। इसलिए पुजारी द्वारा यहाँ एक टांग पर खड़े होकर ही पूजा करने की परम्परा चली आ रही है। माता जखणी की शक्ति को अनुभूत करने पर पुजारी एक टांग से ही मंदिर की परिक्रमा करता है।

आस्था और विश्वास से आच्छादित इस मन्दिर का इतिहास लगभग 450 वर्ष पुराना बताया जाता है। स्थानीय लोगों के अनुसार मंदिर का निर्माण भरमौर के ग्रीमा गांव के गद्दी जाति के एक परिवार ने करवाया था। यह परिवार भरमौर से चंदपुर गांव में आकर बस गया और जखणी माता इस परिवार की ही कुल देवी बताई जाती हैं। गद्दी जाति में “जख” शब्द का प्रयोग देवता के लिए किया जाता है। इसी कारण माता का नाम जखणी माता के नाम से विख्यात हुआ। जखणी माता दुर्गा माता का स्वरूप है। लोक मान्यताओं के अनुसार यहां देवी का स्वरूप एक टांग से विहीन हैं। इसकी पुष्टि तब होती है, जब माता देवी के रूप में मंदिर पुजारी पर विशिष्ट कृपा करती हैं, तो वह लंगड़ी टांग से ही मंदिर की परिक्रमा करते हैं। जखणी माता मंदिर के प्रधान राजीव कुमार बताते हैं कि “वर्षों पहले भरमौर के ग्रीमा गांव में भयंकर सूखा पड़ा था, जिस कारण कई लोग दुखी होकर गांव छोड़कर चले गए। इसी गांव में एक बूढ़ा गद्दी रहता था, जो माता का परम भक्त था। उसने लोगों का दुख दूर करने हेतु माता रानी से प्रार्थना की। 

अपने भक्त की प्रार्थना सुन कर माता एक स्त्री का रूप धारण कर गांव के एक देव जलाशय से पानी का मटका भरने लगी। यह जलाशय पहरेदार की निगरानी में रहता था। पानी भरने की आवाज़ सुनकर वहां के पहरेदार ने उस स्त्री को जल चोरी करते देख उसे रोकने के लिए उस पर तीर चला दिया। निशाना चूक जाने के कारण तीर जल भरे मटके पर जा लगा, जिससे उसमें सुराख़ हो गया। स्त्री के न रुकने पर पहरेदार ने एक और तीर मारा जो माता रूपी स्त्री की बाईं टांग में लग गया , किन्तु माता बिना रुके तेज़ी से जंगल की ओर बढ़ती। छिद्र हुए मटके से जल उसी दिशा में गिरता रहा, जिस ओर माता आगे बढ़ रही थी। अगली सुबह लोगों ने देखा कि उनके गांव में पानी का नाला बह रहा था। दरअसल मटके में हुए सुराख़ से जहाँ-जहाँ भी पानी गिरता रहा, वहां एक नाला बन गया था। आज भी भरमौर गांव में इस नाले के उद्गव में लोक-कथा सुनाई जाती है।

प्रधान राजीव कुमार ने यह भी बताया कि टांग में तीर लगने के कारण माता जखणी का नाम लट्टी जखणी रखा गया। तब से आज तक माता का चेला एक टांग पर खड़ा रहकर ही पूजा अर्चना करता है।

इसके साथ ही मंदिर के संदर्भ में एक और किवदंती सुनने में आती है कि एक गद्दी अपनी भेड़-बकरियों को भरमौर की ओर लेकर जा रहा था। अचानक उसकी भेड़-बकरियां फूलनु रोग के कारण मरने लगी। अपनी भेड़-बकरियों रूपी सम्पदा को नष्ट होता देख गद्दी ने माता जखणी से अपनी सम्पदा की रक्षा करने की प्रार्थना कर मन्नत मांगी कि मैं वापिस गांव चंदपुर आ कर आपके मंदिर का निर्माण करवाऊंगा। माता के आशीर्वाद से गद्दी की भेड़-बकरियां स्वस्थ हो गई, किन्तु गद्दी वापिस गांव आकर गद्दी मंदिर का निर्माण करवाना भूल गया। कुछ वर्षों बाद गद्दी का पांच-छह वर्षीय पुत्र अचानक घर से गायब हो गया। गांव के लोगों द्वारा गद्दी के बेटे को ढूंढने का हर संभव प्रयास किया गया, किन्तु बेटे के न मिलने पर हताश गद्दी को माता जखणी से मांगी मन्नत की याद आई। उसी रात गद्दी को माता जखणी ने सपने में बताया की उसका लड़का जंगल में अमूक स्थान पर सुरक्षित है। अगली सुबह पुत्र के मिलने के बाद गद्दी ने माता जखणी के मंदिर का निर्माण करवाया। 

मंदिर के आगमन पर दाईं ओर माता जखणी के अंगरक्षक, भोलेनाथ सहित हनुमान जी की भव्य विशाल मूर्तियां स्थापित हैं। इसके साथ ही मंदिर में यात्रियों के ठहरने हेतु कमरों की व्यवस्था के साथ-साथ रसोई घर की सुविधा भी उपलब्ध है। लकड़ी पर की गई बारीक नक्काशी मंदिर की सुंदरता में चार चांद लगा देती है। मंदिर के अंदर और बाहर देवी-देवताओं की सुन्दर चित्रकारी और अद्भुत नक्काशी का बेजोड़ नमूना देखकर दर्शक आनंदित हो जाते हैं। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में यह मन्दिर श्रद्धालुओं और धार्मिक पर्यटकों के लिए बहुत दिव्य स्थान है। शहर की खचाखच भीड़ से ऊबे पर्यटक बड़े उत्साह से इस एकांत स्थान पर धार्मिक आस्था और मानसिक थकान दूर करने हेतु आते हैं। यहां दूर-दूर से आए श्रद्धालुओं का जमावड़ा अक्सर लगा रहता है। मंदिर के चारों ओर की मनोरम आबोहवा श्रद्धालुओं का मन मोह लेती है। मंदिर से धौलाधार पर्वतों की मनमोहक श्रृंखला और दूर-दूर तक फैली हरी-भरी रमणीक घाटियों का नज़ारा बेहद ही लुभावना दिखाई देता है। मंदिर के बाहर प्रशाद विक्रेता विनोद कुमार ने बताया कि सर्दियों के दिनों बर्फ से ढके धौलाधार के पहाड़ इस पवित्र स्थान की शोभा और बढ़ा देते हैं। 

मुख्यतः इन दिनों लोगों का जमावड़ा बड़े ही उत्साहपूर्वक लगा रहता है। पहाड़ी क्षेत्र में बने इस पवित्र स्थल पर श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। स्थानीय लोग यह भी बताते हैं कि मंदिर के बनने के बाद से इस स्थान के आस-पास नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव भी कम हो गया। इसके साथ ही लोगों की श्रद्धा से मांगी गई हर मन्नत माता जखणी पूरी करती हैं। 

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